SWAMI DAYANAND SARASWATI JAYANTI 2023 | स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती कब और कैसे मनायी जाता है?

 Swami Dayanand Saraswati Jayanti 2023 in Hindi: समाज सुधारक और धर्म के रक्षक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी को हुआ था। इस वर्ष यानि 2023 को 15 फरवरी को स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती मनायी जायेगी। स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें। और कमेंट बॉक्स में अपना सुझाव अवश्य दे।


आर्य समाज के संस्थापक, समाज सुधारक और धर्म के रक्षक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को हुआ था। इस वर्ष यानि 2023 में 15 फरवरी, 2023 को स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म दिन मनाया जायेगा। इनका जन्म हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष दशमी यानि 12 फरवरी, 1824 को हुआ था। जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार 15 फरवरी को मनाया जायेगा Swami Dayanand Saraswatiस्वमी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Swami Dayanand Saraswati Biography in Hindi)

संक्षिप्त जीवन परिचय

नामस्वामी दयानंद सरस्वती
बचपन का नाममूलशंकर
जन्म12 फरवरी, 1824 (फाल्गून कृष्ण पक्ष दशमी)
जन्म स्थानटंकारा (गुजरात)
जातिब्राह्मण
माता-पिताअमृत बाई – अंबाशंकर तिवारी
गुरुस्वामी विरजानंद (1860)
स्थापनाआर्य समाज
संन्यास21 वर्ष की आय में
नारावेदों की ओर लौटों
रचना (पुस्तक)सत्यार्थ प्रकाश (हिन्दी भाषा)
मृत्यु1883 ईवीं

समाज सुधार और धर्म के प्रचारक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को हुआ था।ये एक ब्राह्मण कुल के थे। इनका पचपन का नाम मूलशंकर था।इनके माता का नाम अमृत बाई था, तथा पिता का नाम अंबाशंकर तिवारी था। इसकी शादी युवा अवस्था में तय हो गयी थी। किन्तु शादी तय हो के बाद अपना घर 1846 में छोड़ दिया। तब इनकी वर्ष मात्र 21 वर्ष थी। और देश का भ्रमण करने लगे। स्वामी दयानंद सरस्वती की मुलाकात 1860 में मथुरा के स्वामी विराजनंद से हुई थी, जो इनके गुरु हुए।

1857 की क्रांति में योगदान

1846 में घर से निकलने के बाद सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाना शुरु किया क्योंकि उन दिनों भारत में अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। इन्होंने भारत भ्रमण करना शुरु किया तो देखा की भारत के सभी लोग अंग्रेजों के प्रति काफी आक्रोश में है। बस उन्हें एक मार्गदर्शन की जरूरत थी। जो भारत के लोगों से मिली। तभी से उन्होंने लोगों एकत्र करना शुरु कर दिया, उन दिनों स्वामी जी से काफी वीर पुरुष भी प्रभावित थे। उन में तात्या टोपे, नाना साहेब पेशवा, हाजी मुल्ला खां, बाला साहब आदि थे, इन लोगो ने स्वामी जी के अनुसार कार्य किया।

जिसमें आपसी रिश्ते बने और एक जुटता आयी। इस कार्य के लिए उन्होंने रोटी और कमल को प्रतीक बनाया। और सभी को आजादी के लिए प्रेरित किया। इससे साधू-संतों को भी जोड़ने का कार्य किया और पूरे भारत में आजादी के लिए संदेश वाहक का कार्य किया। जिससे उनके माध्यम से जन साधारण को आजादी के लिए प्रेरित किया जा सके।


रोकने प्रयास किया था। मनुष्य जाति को प्रेम आदर का भाव सिखाया। परोपकार का संदेश दिया।

विधवा विवाह (Widow Marriage Act)

भारत में हिन्दू समाज के अन्तर्गत विधवाओं की स्थिति दयनीय थी। पुनर्विवाह का प्रचलन नहीं था। इनका जीवन काफी कष्टकारी था। स्वामी दयानंद सरस्वती और ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयास से 1856 ई. में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ।



स्वामी दयानंद सरस्वती सदैव कहते थे कि शास्त्रों में वर्ण भेद जैसी व्यवस्था नहीं है। वर्ण समाज को सुचारु रुप से चलाने की एक व्यवस्था है। कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है। शास्त्र ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं करता है।

नारी शिक्षा और सम्मान (Women Education And Respect)

स्वामी जी सदैव नारी शिक्षा का समर्थन करते थे। उनका मानना था कि नारी सशक्तिकरण से ही समाज का विकास होगा। जीवन के हर एक क्षेत्र में नारियों से विचार विमर्श आवश्यक हैं, जिसके लिये उनका शिक्षित होना जरूरी हैं।

जीवन का अन्तिम संघर्ष

1883 ई. में स्वामी दयानंद सरस्वती ने जोधपुर के महाराज जसवंत सिंह के अतिथि के रुप में उनके दरबार में उपस्थित हुए थे। महाराज जसवंत सिंह एक ओर धर्म की बात करते थे। और दूसरी ओर काम वासना में लिप्त थे। इस देखकर स्वामी दयानंद सरस्वती ने उन्होंने उपदेश दिया, महाराज ने इस निर्देश को स्वीकार कर लिया, लेकिन उनकी प्रेमिका स्वामी जी से नाराज हो गयी और स्वामी जी को मारने के लिए उसने रसौईया के साथ मिलकर स्वामी जी के भोजन में कांच के टुकड़े (विष) मिला दिए, जिससे स्वामी जी का स्वास्थ बहुत ख़राब हो गया। उसी समय इलाज प्रारम्भ हुआ, किन्तु उनका स्वास्थ्य दिन-प्रति बिगड़ता ही गया। जिसके बाद 30 अक्टूबर 1883, को उनका देहांत हो गया।

स्वामी जी ने अपना सारा जीवन समाज सुधार में लगा दिया। 59 वर्ष तक लोगों के बीच स्वतंत्रता का बीज बोते रहे।

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